*दुर्गा पूजा:--*
*नवरात्र में अखंड ज्योत का महत्व:--*
अखंड ज्योत को जलाने से घर में हमेशा मां दुर्गा की कृपा बनी रहती है। नवरात्र में अखंड ज्योत के कुछ नियम होते हैं जिन्हें नवरात्र में पालन करना होता है। *परंम्परा है कि जिन घरों में अखंड ज्योत जलाते है उन्हें जमीन पर सोना होता है।*
*कलश स्थापना और पूजन के लिए महत्त्वपूर्ण वस्तुएं:--*
१. मिट्टी का पात्र
२. जौ
३. शुद्ध साफ की हुई मिट्टी जिसमे पत्थर नहीं हो
४. शुद्ध जल से भरा हुआ मिट्टी, सोना, चांदी, तांबा या पीतल का कलश
५. मोली (लाल सूत्र)
६. अशोक या आम के 5 पत्ते कलश को ढकने के लिए
७. मिट्टी का ढक्कन
८. साबुत चावल
९. एक पानी वाला नारियल
१०. पूजा में काम आने वाली सुपारी
११. कलश में रखने के लिए सिक्के
१२. लाल कपड़ा या चुनरी
१३. मिठाई
१४. लाल गुलाब के फूलो की माला
*नवरात्र कलश स्थापना की विधि:--*
महर्षि वेद व्यास से द्वारा भविष्य पुराण में बताया गया है की
१. कलश स्थापना के लिए सबसे पहले पूजा स्थल को अच्छे से शुद्ध किया जाना चाहिए।
२. उसके उपरान्त एक लकड़ी का पाटे पर लाल कपडा बिछाकर
३. उस पर थोड़े चावल गणेश भगवान को याद करते हुए रख देने चाहिए |
४. फिर जिस कलश को स्थापित करना है उसमे मिट्टी भर के और पानी डाल कर उसमे जौ बो देना चाहिए |
५. इसी कलश पर रोली से स्वास्तिक और ॐ बनाकर
६. कलश के मुख पर मोली से रक्षा सूत्र बांध दे |
७. कलश में सुपारी, सिक्का डालकर आम या अशोक के पत्ते रख दे
८. और फिर कलश के मुख को ढक्कन से ढक दे।
९. ढक्कन को चावल से भर दे।
१०. पास में ही एक नारियल जिसे लाल मैया की चुनरी से लपेटकर रक्षा सूत्र से बांध देना चाहिए।
११. इस नारियल को कलश के ढक्कन रखे
१२. और सभी देवी देवताओं का आवाहन करे ।
१३. अंत में दीपक जलाकर कलश की पूजा करे ।
१४. अंत में कलश पर फूल और मिठाइयां चढ़ा दे|
१५. अब हर दिन नवरात्रों में इस कलश की पूजा करे |
*ध्यान देने योग्य बात:--*
जो कलश आप स्थापित कर रहे है वह मिट्टी, तांबा, पीतल, सोना, या चांदी का होना चाहिए। भूल से भी लोहे या स्टील के कलश का प्रयोग नहीं करे।
नव का अर्थ नौ तथा अर्ण का अर्थ अक्षर होता है। अतः नवार्ण नवों अक्षरों वाला वह मंत्र है, नवार्ण मंत्र 'ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे' है।
नौ अक्षरों वाले इस नवार्ण मंत्र के एक-एक अक्षर का संबंध दुर्गा की एक-एक शक्ति से है और उस एक-एक शक्ति का संबंध एक-एक ग्रह से है। नवार्ण मंत्र का जाप 108 दाने की माला पर कम से कम तीन बार अवश्य करना चाहिए।
ब्रह्मांड के सारे ग्रह एकत्रित होकर जब सक्रिय हो जाते हैं, तब उसका दुष्प्रभाव प्राणियों पर पड़ता है। ग्रहों के इसी दुष्प्रभाव से बचने के लिए नवरात्रि में दुर्गा की पूजा की जाती है।
*मां दुर्गा के नवार्ण मंत्र और उनसे संचालित ग्रह:--*
1. नवार्ण मंत्र के नौ अक्षरों में पहला अक्षर ऐं है, जो सूर्य ग्रह को नियंत्रित करता है। ऐं का संबंध दुर्गा की पहली शक्ति शैल पुत्री से है, जिसकी उपासना 'प्रथम नवरात्र' को की जाती है
2. दूसरा अक्षर ह्रीं है, जो चंद्रमा ग्रह को नियंत्रित करता है। इसका संबंध दुर्गा की दूसरी शक्ति ब्रह्मचारिणी से है, जिसकी पूजा दूसरे नवरात्रि को होती है।
3. तीसरा अक्षर क्लीं है, चौथा अक्षर चा, पांचवां अक्षर मुं, छठा अक्षर डा, सातवां अक्षर यै, आठवां अक्षर वि तथा नौवा अक्षर चै है। जो क्रमशः मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु तथा केतु ग्रहों को नियंत्रित करता है।
इन अक्षरों से संबंधित दुर्गा की शक्तियां क्रमशः चंद्रघंटा, कुष्माण्डा, स्कंदमाता, कात्यायिनी, कालरात्रि, महागौरी तथा सिद्धिदात्री हैं, जिनकी आराधना क्रमश : तीसरे, चौथे, पांचवें, छठे, सातवें, आठवें तथा नौवें नवरात्रि को की जाती है।
इस नवार्ण मंत्र के तीन देवता ब्रह्मा, विष्णु और महेश हैं तथा इसकी तीन देवियां महाकाली, महालक्ष्मी तथा महासरस्वती हैं, दुर्गा की यह नवों शक्तियां धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चार पुरुषार्थों की प्राप्ति में भी सहायक होती हैं।
नवरात्रि का पर्व नौ शक्ति रुपी देवियों के पूजा के लिए है | यह सभी देवी रूप अपने आप में शक्ति और भक्ति के भंडार है | जगत में अच्छाई के लिए माँ का कल्याणकारी रूप सिद्धिदात्री, महागौरी आदि है, और इसी के साथ जगत में पनप रही बुराई के लिए माँ कालरात्रि, चन्द्रघंटा रूप धारण कर लेती है|
*अब जाने वे बीज मंत्र जो इन नौ देवियों को प्रसन्न करते है | हर एक देवी का पृथक बीज मंत्र यहाँ दिया गया है:--*
1. शैलपुत्री : ह्रीं शिवायै नम:
2. ब्रह्मचारिणी : ह्रीं श्री अम्बिकायै नम:
3. चन्द्रघंटा : ऐं श्रीं शक्तयै नम:
4. कूष्मांडा ऐं ह्री देव्यै नम:
5. स्कंदमाता : ह्रीं क्लीं स्वमिन्यै नम:
6. कात्यायनी : क्लीं श्री त्रिनेत्रायै नम:
7. कालरात्रि : क्लीं ऐं श्री कालिकायै नम:
8. महागौरी : श्री क्लीं ह्रीं वरदायै नम:
9. सिद्धिदात्री : ह्रीं क्लीं ऐं सिद्धये नम:
*देवी दुर्गा के नौ रूप कौन कौन से है:--*
*१. शैलपुत्री (पर्वत की बेटी):--*
वह पर्वत हिमालय की बेटी है और नौ दुर्गा में पहली रूप है । पिछले जन्म में वह राजा दक्ष की पुत्री थी। इस जन्म में उसका नाम सती-भवानी था और भगवान शिव की पत्नी । एक बार दक्षा ने भगवान शिव को आमंत्रित किए बिना एक बड़े यज्ञ का आयोजन किया था देवी सती वहा पहुँच गयी और तर्क करने लगी।
उनके पिता ने उनके पति (भगवान शिव) का अपमान जारी रखा था,सती भगवान् का अपमान सहन नहीं कर पाती और अपने आप को यज्ञ की आग में भस्म कर दी | दूसरे जन्म वह हिमालय की बेटी पार्वती- हेमावती के रूप में जन्म लेती है और भगवान शिव से विवाह करती है।
*२. ब्रह्मचारिणी (माँ दुर्गा का शांति पूर्ण रूप):--*
दूसरी उपस्तिथि नौ दुर्गा में माँ ब्रह्माचारिणी की है। "ब्रह्मा" शब्द उनके लिए लिया जाता है जो कठोर भक्ति करते है और अपने दिमाग और दिल को संतुलन में रख कर भगवान को खुश करते है।
यहाँ ब्रह्मा का अर्थ है "तप" । माँ ब्रह्मचारिणी की मूर्ति बहुत ही सुन्दर है। उनके दाहिने हाथ में गुलाब और बाएं हाथ में पवित्र पानी के बर्तन (कमंडल) है। वह पूर्ण उत्साह से भरी हुई है।
उन्होंने तपस्या क्यों की उसपर एक कहानी है | पार्वती हिमवान की बेटी थी। एक दिन वह अपने दोस्तों के साथ खेल में व्यस्त थी नारद मुनि उनके पास आये और भविष्यवाणी की "तुम्हरी शादी एक नग्न भयानक भोलेनाथ से होगी और उन्होंने उसे सती की कहानी भी सुनाई।
नारद मुनि ने उनसे यह भी कहा उन्हें भोलेनाथ के लिए कठोर तपस्या भी करनी पढ़ेगी। इसीलिए माँ पार्वती ने अपनी माँ मेनका से कहा की वह शम्भू (भोलेनाथ ) से ही शादी करेगी नहीं तोह वह अविवाहित रहेगी। यह बोलकर वह जंगल में तपस्या निरीक्षण करने के लिए चली गयी। इसीलिए उन्हें तपचारिणी ब्रह्मचारिणी कहा जाता है।
*३. चंद्रघंटा (माँ का गुस्से का रूप):--*
तीसरी शक्ति का नाम है चंद्रघंटा जिनके सर पर आधा चन्द्र (चाँद) और बजती घंटी है। वह शेर पर बैठी संगर्ष के लिए तैयार रहती है। उनके माथे में एक आधा परिपत्र चाँद (चंद्र) है। वह आकर्षक और चमकदार है । वह ३ आँखों और दस हाथों में दस हतियार पकडे रहती है और उनका रंग गोल्डन है। वह हिम्मत की अभूतपूर्व छवि है। उनकी घंटी की भयानक ध्वनि सभी राक्षसों और प्रतिद्वंद्वियों को डरा देती है ।
*४. कुष्मांडा (माँ का ख़ुशी भरा रूप):--*
माँ के चौथे रूप का नाम है कुष्मांडा। "कु" मतलब थोड़ा "शं" मतलब गरम "अंडा" मतलब अंडा। यहाँ अंडा का मतलब है ब्रह्मांडीय अंडा ।
वह ब्रह्मांड की निर्माता के रूप में जानी जाती है जो उनके प्रकाश के फैलने से निर्माण होता है। वह सूर्य की तरह सभी दस दिशाओं में चमकती रहती है। उनके पास आठ हाथ है, साथ प्रकार के हतियार उनके हाथ में चमकते रहते है। उनके दाहिने हाथ में माला होती है और वह शेर की सवारी करती है।
*५. स्कंदमाता (माँ के आशीर्वाद का रूप):--*
देवी दुर्गा का पांचवा रूप है "स्कंद माता", हिमालय की पुत्री, उन्होंने भगवान शिव के साथ शादी कर ली थी ।
*उनका एक बेटा था जिसका नाम "स्कन्दा" था स्कन्दा देवताओं की सेना का प्रमुख था। स्कंदमाता आग की देवी है। स्कन्दा उनकी गोद में बैठा रहता है। उनकी तीन आँख और चार हाथ है। वह सफ़ेद रंग की है। वह कमल पैर बैठी रहती है और उनके दोनों हाथों में कमल रहता है।*
*६. कात्यायनी (माँ दुर्गा की बेटी जैसी):--*
माँ दुर्गा का छठा रूप है कात्यायनी। एक बार एक महान संत जिनका नाम कता था, जो अपने समय में बहुत प्रसिद्ध थे, उन्होंने देवी माँ की कृपा प्राप्त करने के लिए लंबे समय तक तपस्या करनी पढ़ी,
*उन्होंने एक देवी के रूप में एक बेटी की आशा व्यक्त की थी। उनकी इच्छा के अनुसार माँ ने उनकी इच्छा को पूरा किया और माँ कात्यानी का जन्म कता के पास हुआ माँ दुर्गा के रूप में।*
*७. कालरात्रि (माँ का भयंकर रूप):--*
माँ दुर्गा का सातवाँ रूप है कालरात्रि। वह काली रात की तरह है, उनके बाल बिखरे होते है, वह चमकीले भूषण पहनती है। उनकी तीन उज्जवल ऑंखें है, हजारो आग की लपटे निकलती है जब वह सांस लेती है।
वह शावा (मृत शरीर) पे सावरी करती है, उनके दाहिने हाथ में उस्तरा तेज तलवार है। उनका निचला हाथ आशीर्वाद के लिए है। । जलती हुई मशाल (मशाल) उसके बाएं हाथ में है और उनके निचले बाएं हाथ में वह उनके भक्तों को निडर बनाती है। उन्हें "शुभकुमारी" भी कहा जाता है जिसका मतलब है जो हमेश अच्छा करती है।
*८. महागौरी (माँ पार्वती का रूप और पवित्रता का स्वरुप):--*
आठवीं दुर्गा "महा गौरी है।" वह एक शंख, चंद्रमा और जैस्मीन के रूप सी सफेद है, वह आठ साल की है, उनके गहने और वस्त्र सफ़ेद और साफ़ होते है। उनकी तीन आँखें है, उनकी सवारी बैल है,उनके चार हाथ है। उनके निचले बाय हाथ की मुद्रा निडर है, ऊपर के बाएं हाथ में "त्रिशूल" है,ऊपर के दाहिने हाथ डफ है और निचला दाहिना हाथ आशीर्वाद शैली में है।
वह शांत और शांतिपूर्ण है और शांतिपूर्ण शैली में मौजूद है. यह कहा जाता है *जब माँ गौरी का शरीर गन्दा हो गया था धुल के वजह से और पृत्वी भी गन्दी हो गयी थी जब भगवान शिव ने गंगा के जल से उसे साफ़ किया था। तब उनका शरीर बिजली की तरह उज्ज्वल बन गया. इसीलिए उन्हें महागौरी कहा जाता है ।* यह भी कहा जाता है जो भी महा गौरी की पूजा करता है उसके वर्तमान, अतीत और भविष्य के पाप धुल जाते है।
*९. सिद्धिदात्री (माँ का ज्ञानी रूप):--*
माँ का नौवा रूप है "सिद्धिदात्री", आठ सिद्धिः है,जो है अनिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, लिषित्वा और वशित्व। माँ शक्ति यह सभी सिद्धिः देती है।
उनके पास कई अदबुध शक्तिया है, *यह कहा जाता है "देवीपुराण" में भगवान शिव को यह सब सिद्धिः मिली है महाशक्ति की पूजा करने से। उनकी कृतज्ञता के साथ शिव का आधा शरीर देवी का बन गया था और वह " अर्धनारीश्वर " के नाम से प्रसिद्ध हो गए।*
माँ सिद्धिदात्री की सवारी शेर है, उनके चार हाथ है और वह प्रसन्न लगती है। दुर्गा का यह रूप सबसे अच्छा धार्मिक संपत्ति प्राप्त करने के लिए सभी देवताओं, ऋषियों मुनीस, सिद्ध, योगियों, संतों और श्रद्धालुओं के द्वारा पूजा जाता है।
ब्राह्मण समाज द्वारा प्राप्त